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निःस्वार्थ भाव से सेवा करना ही महानता है। यदि कोई प्राणी अपने हित को नजरअंदाज करते हुए निःस्वार्थ भाव से सेवा करता है ,तो वह एक महान इंसान है।
दरअसल मैं आज इस ब्लाॅग के माध्यम से आपसे यह जानना चाहता हूं कि देश के सर्वोच्च पुरस्कार श्भारत रत्न का सच्चा हकदार कौन है? सचिन तेंदुलकर या मेजर ध्यानचंद।
परसों मेरे अध्यापक ,श्री नीरन श्रीवास्तव जी ने एक ऐसी सच्चाई पर से पर्दा उठाया जिसे पढ़ कर शायद आप भी स्तब्ध रह जाएं।
जहां तक सचिन की बात है ,तो उन्हें ए प्लस श्रेणी की सुरक्षा प्राप्त है।साथ ही उन्हें विज्ञापन से भी अच्छी खासी रकम मिल जाती है।यहां तक की किसी समारोह में बतौर अतिथि उपलब्ध होने तक के लिए वे अच्छी खासी रकम वसूलते हैं।
महाशय से तो कोई भी टैक्स भी नहीं पड़ता है,फिर चाहे वो बिजली का हो या फिर पानी का।
अब मैं आपको ध्यानचंद की हकीकत बताना चाहूंगा। मेजर एक बार उत्तरी जर्मनी की ओर से मैच खेल रहे थे।इसमें उन्होंने पहले हाफ में नौ गोल दागे।इसी मैच को विपक्षी टीम के समर्थन में तानाशाह हिटलर भी दर्शक दीर्घा में बैठा हुआ देख रहा था। मेजर के इस कारनामे को देखकर उसे लगा कि भारत एस टोने-टोटके वाला देश है ,और हो सकता है कि ध्यानचंद ने भी अपनी हाकी में कुछ जादू किया होगा। उसने पहले हाफ के खत्म होते ही ध्यानचंद को बुलाने का आदेश दिया।तत्पश्चात उसने मेजर की हाॅकी तोड़ दी।मेजर मन ही मन बहुत क्रोधित हुए।लेकिन वो उस समय कुछ भी नहीं कर सकते थे।
फिर उन्होंने पास ही रखी एक मेज से उसके पावे को तोड़कर दूसरे हाफ के लिए मैदान में उतर पड़े।उन्होंने इस बार भी सात गोल दाग दिए।अब हिटलर को भी यकीन हो चला था कि उनकी हाॅकी में कोई जादू नहीं था।
मैच खत्म होने के बाद हिटलर ने मेजर को बुलाया और उन्हें भारत छोड़ उनके साथ चलने को कहा।यहां तक कि उसने उन्हें जर्मनी का चांसलर बनाने के साथ साथ मनमाफिक रकम देने को भी कहा।मगर मेजर ने उसका यह प्रस्ताव उसी छड ठुकरा दिया।
यदि वो चाहते तो भारत छोड़ कर चले जाते ,मगर उन्होंने अपने देश को अहमियत देते हुए देश के लिए हाॅकी खेलना जारी रखा।
वैसे मेरे अनुसार तो मेजर ही सचिन से महान हुए। अब मैं आप लोगों पर यह छोड़ता हूं कि आखिर सचिन और ध्यानचंद में महान कौन है ,और भारत रत्न का प्रबल दावेदार कौन?,
कृपया अपनी राय अवश्य दें।
धन्यवाद!
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