- 66 Posts
- 273 Comments
परतंत्रता दु:ख है। स्वतंत्रता सुख है, क्योंकि वहां कोई भय नहीं होता। परतंत्रता में भय होता है। आदमी डरता है कि कोई गलती होने पर दंड मिलेगा। दंड का यह भय ही दुख का कारण बनता है। कन्फ्यूशियस की एक कहानी है—
एक पिंजरे में बाज, बिल्ली और चूहा तीनों को बंद कर दिया गया और उसी पिंजरे में मांस का एक बड़ा टुकड़ा रख दिया गया। तीनों प्राणी उस पिंजरे में बंद हैं। तीनों भूखे हैं, किंतु तीनों ही मांस को खा नहीं रहे हैं। सबके साथ कन्फ्यूशियस भी इस दृश्य को देख रहे हैं। वह ज्ञानी थे, इसलिए लोगों ने उनसे पूछा—
“ये प्राणी सामने भोजन होने पर भी उसका उपभोग क्यों नहीं कर रहे हैं?” एक-दूसरे को देख क्यों रहे हैं? कन्फ्यूशियस ने कहा— “चूहा बिल्ली से डर रहा है। बिल्ली बाज से डर रही है, इसलिए दोनों मांस की ओर ललचाई दृष्टि से देख रहे हैं, किंतु उसे खा नहीं रहे हैं।”
“लेकिन बाज क्यों नहीं खा रहा है?”
“बाज इसलिए नहीं खा रहा है, क्योंकि वह असमंजस में है। वह यह सोच रहा है कि चूहे को खाऊं या बिल्ली को खाऊं? इसी ऊहापोह में वह कोई निर्णय नहीं ले पा रहा है। ये तीनों ही भूख से मर जाएंगे, किंतु सामने रखे आहार का उपभोग नहीं कर सकेंगे।
भय के कारण आदमी सामने रखे आहार को भी भोग नहीं सकता। अभय सुख का सबसे बड़ा कारण है। अहिंसा का सबसे पहला सूत्र है अभय।
Read Comments