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जमाना टीवी शॉपिंग का है …

बेबाक 'बकबक'....जारी है..
बेबाक 'बकबक'....जारी है..
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बाजार से इंसान का रिश्ता लगभग उतना ही पुराना है, जितना भूख से इंसान का रिश्ता। सदियों से बाजार इंसान की जरूरत की चीजें इंसान को पहुंचाने का काम करता रहा है। और इंसान के लिए भी बाजार अपनी जरूरत की चीजों को बेचने वाली एक शक्ति के रूप में ही मौजूद रहा। लेकिन वक्त, समाज , टेक्नालॉजी और आधुनिकता की बयार ने जहां एक ओर बाजार का बेहद विस्तार किया, वहीं इंसान के भूख से रिश्ते में भी अहम बदलाव पैदा किये।
आज इंसान केवल वही सामान नहीं खरीदता जो उसकी जरूरत का है, बल्कि बाजार के दबाव में वह तमाम ऐसी चीजें भी खरीदता है, जो उसका जरूरत की नहीं हैं या तात्कालिक जरूरत की नहीं हैं। कम से कम पिछले डेढ़ दो दशकों में, भारत में बाजार का इतना तेजी से विकास हुआ है कि आज बाजार की उपेक्षा करना संभव नहीं है। यह बाजार की ही ताकत का परिणाम है कि उसने शॉपिंग को इनसान की जीवन शैली का एक जरूरी हिस्सा बना दिया है। आज शॉपिंग इनसान के लिए लगभग वैसे ही जरूरी हो गयी है, जिस तरह घूमना-फिरना उसकी जरूरत है। डेढ़-दो दशक पहले का शॉपिंग का परिदृश्य देखें तो हमें छोटे शहरों, कस्बों और गांवों में लगने वाले साप्ताहिक बाजार दिखाई पड़ेंगे, जिनका इंतजार निम्न मध्यवर्ग और निम्न वर्ग के लोग बेसब्री से किया करते थे। सोम, मंगल, बुध, गुरु, शुक्र, शनि और इतवार बाजार प्रतिदिन लगा करते थे और हर दिन के बाजार की अलग प्रकृति होती थी। ऐसा नहीं है कि ये बाजार लगने एकदम बंद हो गये हैं। हां, इनके आकर्षण में जरूर कमी आई है।
अब इन बाजारों की जगह बड़े और भव्य शॉपिंग मॉल लेते जा रहे हैं, जहां खरीदारी के सामान के साथ ही मनोरंजन का भी सारा सामान उपलब्ध होता है। बेशक यहां चीजें तुलनात्मक रूप से महंगी होती हैं, लेकिन इसके बावजूद भारतीय मध्यवर्ग को मॉल्स की अवधारणा पसंद आयी। लेकिन दिलचस्प बात है कि मॉल्स में खरीदारी के आंकड़े कभी भी बहुत सकारात्मक नहीं रहे। लोग वहां जाते तो हैं, लेकिन शॉपिंग उनकी प्राथमिकता नहीं होती। वहां खरीददारों से ज्यादा तादाद तफरीह करने वालों की होती है। गर्मियों में लू के थपेड़ों से बचने के लिए इससे अच्छा एसीयुक्त स्थान और शायद कहीं नहीं। इनमें घूमते-घूमते और इनकी भव्यता के गुणगान करते करते समय कब गुजर जाता है,इसकी भनक भी नहीं लगती।
लेकिन शॉपिंग का एक खास फंडा यह था कि इंसान को तैयार होकर बाजार तक जाना ही पड़ता था। बाजार इस पर लगातार सोच रहा था। वह सोच रहा था कि किस तरह से इंसान के बैडरूम तक पहुंचा जाए। यानी किस तरह व्यक्ति अपने घर से बाहर निकले बगैर ही शॉपिंग कर सके। और इस अवधारणा को अमली जामा पहनाया टेलीफोन और इंटरनेट ने। इनके आने से शुरू हुआ टेली-शॉपिंग और ऑनलाइन शॉपिंग का सिलसिला। अब लोगों के लिए यह जरूरी नहीं रह गया कि वे शॉपिंग करने के लिए तैयार होकर बाहर जाएं। अब वे टेलीफोन पर या ऑनलाइन ही चीजों का ऑर्डर करने लगे। पर इसमें एक दिक्कत आई और अब भी आ रही है। इस तरह की शॉपिंग में माल बेचने वाला और माल दोनों अदृश्य थे। तो उपभोक्ता इस तरह की शॉपिंग पर बहुत ज्यादा भरोसा नहीं कर पाये। एक दिक्कत यह भी थी कि आज भी बड़ी संख्या में भारतीय जनसंख्या नेट यूजर्स नहीं है। तो शॉपिंग की यह अवधारणाएं भी, चलते रहने के बावजूद बहुत ज्यादा सफल नहीं हो पा रही थी। हालांकि इस बीच टेलीविजन की पहुंच बेहद बढ़ चुकी थी। लगभग हर घर में टीवी पहुंच चुका था। और आम दर्शक टीवी पर भरोसा करने लगा था। तो बाजार ने इसी टेलीविजन के जरिये लोगों के घर तक पहुंचने की सोची और बाजार में एक नयी अवधारणा आई-टीवी शॉपिंग। इसके मूल उद्देश्य था कि व्यक्ति जब चाहे शॉपिंग कर सके। चैबीस घंटे ,कहीं भी , कभी भी । टीवी शॉपिंग की इसी अवधारणा की वजह से आज कई टीवी चैनल्स लांच हो गए हैं। इसमें तमाम तरह के उत्पादों को लेकर इनोवेटिव किस्म के प्रोग्राम बनाये गये, ताकि उपभोक्ताओं को उत्पादों के बारे में महीन से महीन जानकारी दी जा सके। इनका मकसद है लोगों में शॉपिंग की हैबिट विकसित करना और उन्हें सिखाना कि आत्मविश्वास के साथ शॉपिंग कैसे की जा सकती है। छोटे शहरों से लेकर भारत के तमाम बड़े शहरों तक से ऑर्डर आ रहे हैं।
टीवी शॉपिंग का क्रेज भारत में कितनी तेजी से फैल रहा है, इसका अंदाजा इन चैनल्स के आंकड़ों से लगाया जा सकता है। इनकी प्रतिदिन सेल , कॉल्स और यहां मौजूद ब्रांडेड आयटम्स की संख्या दिन प्रतिदिन बढ़ती जा रही है। पहले भारत के 450 शहरों के लोग टीवी के जरिये शॉपिंग कर रहे थे, आज 2700 शहरों के लोग टीवी शॉपिंग में रुचि ले रहे हैं। यानी टीवी शॉपिंग मंे लोगों की रुचि लगातार बढ़ रही है। सवाल उठता है क्यों ? दरअसल ये साइट्स और चैनल्स मैन्यूफैक्चरर से प्रोडक्ट लेकर सीधा ग्राहकों तक पहुंचाते हैं। यानी मैन्यूफैक्चरर और उपभोक्ता के बीच के सारे मिडिलमैन खत्म। इससे उपभोक्ताओं को सस्ता माल मिलता है। वो भी बिना कहीं जाए। साथ ही इसमें प्रोडक्ट्स पर वारंटी भी दी जाती है।
इतना ही नहीं इसमें भुगतान सामान की डिलीवरी होने के बाद करने की भी सुविधा है। आर्डर देने के बाद हफते भर के अंदर सामान घर तक पहुंच जाता है। दूसरा कारण, टीवी ही एकमात्र ऐसा जरिया है, जहां ग्राहक खरीदे जाने वाले प्रोडक्ट का डेमोन्स्ट्ेशन देख सकते हैं। ये चैनल्स अपने शोज में हर प्रोडक्ट के सारे फीचर बताते हैं, जो सामान्य शॉपकीपर अक्सर नहीं बताते। एक तरह से इससे लोगों में कंज्यूमर अवेरनेस भी पैदा होती है। शायद यही वजह है कि लोग इस पर भरोसा करने लगे हैं।
इतना ही नहीं यहां तक जो भारतीय महिलाएं अमूमन ज्वैलरी को पहन कर देखने के बाद ही खरीदती थीं,आज टीवी शॉपिंग की वजह से ये महजं टीवी पर देख कर ज्वैलरी की खरीददारी कर रही हैं। यहां तक कि शादियों वगैरह की भी शाॅपिंग लोग इन्हीं साइट्स और चैनल्स के माध्यम से कर रहें हैं। यहां तमाम इलेक्ट्रानिक गैजेट्स से लेकर कपड़े,किताबें,ज्वैलरी ,खिलौने आदि मौजूद हैं।मतलब साफ है कि इनका कोई विशेष टार्गेट कंज्यूमर नहीं है। हर आयु वर्ग के लिए यहां तमाम प्रोडक्ट्स मौजूद हैं। जैसे जैसे इंटरनेट और टीवी का विस्तार हमारे देश हो रहा है ,वैसे वैसे आॅनलाइन शाॅपिंग का भी क्रेज बढता जा रहा है।
आंकड़ों के हिसाब से यह कहा जा सकता है कि भविष्य टीवी शॉपिंग का है। इसकी एक और वजह यह भी है कि टीवी के जरिये बाजार आपके अपने घर मंे घुस आया है, आप जब चाहें यहां से सामान खरीद सकते हैं। जहां तक इस तरह की शॉपिंग पर भरोसे की बात है तो वह भी देर-सवेर हो ही जाएगा और तब बाजार और इनसान का रिश्ता निश्चित ही एक नया रूप ले लेगा।
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