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….क्या मिला तुम्हें ??

बेबाक 'बकबक'....जारी है..
बेबाक 'बकबक'....जारी है..
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‎….क्या मिला तुम्हें !
हर शाम अब दरवाज़े पर दस्तक न होगी-
ठहाकों की गूँज , हंसी की फुल्जडी न होगी ।
अब कौन कन्धों पर उन्हें अक्सर घुमायेगा ?
ऊँगली पकड़के उनकी, उन्हें चलना सिखाएगा ??
लाठी बनेगा कौन बुढ़ापे की उनकी –
कौन कन्धों पर रखकर उन्हें शमशान ले जायेगा ?
बहकावे में आ तुमने, उजाड़े हैं कई घर ….बोलो

….क्या मिला तुम्हें!

सपनों को कहाँ खोजें, नैनों में जो भरे थे ..
आंसू ही जिनके जीवन की अब धरोहर हैं !
मासूम सी आँखों में -सवाल उठ खड़ा हुआ है ,
क्यों यह हुजूम आज मेरे घर में यूँ उमड़ा है …??
खिलने के दिनों में ,उजाड़े कई बचपन ….बोलो

….क्या मिला तुम्हें!

जीवन तो यूँही चलता है …
फिर चलता रहेगा…
ज़ख्मों को ढांप हर कोई यूँ बढ़ता रहेगा-
दहशत ने रोका है कभी, न रोक पायेगा !
जीना तो है ज़रूरी – तू भी जान जायेगा !!
फिर अपनी आत्मा को बेच …

…..क्या मिला तुम्हें –

लाखों की बददुआ को सींच…बोलो
….क्या मिला तुम्हें !!!!
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