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शर्मा जी का दस वर्षीय बेटा स्कूल से आया, तो उन्होनें लाड़ जताते हुए कहा, ‘आ गए मेरे जिगर के टुकड़े।’ बेटे ने रोज की तरह बस्ते को सोफे पर पटका और कुटिल मुस्कान बिखेरते हुए पूछा, ‘पापा! ये पुंगी कैसे बजती है? और फिर यह पुंगी है क्या बला? मुझे आज शाम को मार्केट में चलकर एक पुंगी दिला दीजिए। मैं भी दिन भर बजाऊंगा।’ बेटे की बात सुनकर शर्मा जी चैंक गए, ‘क्या मतलब?’ बेटे ने मामले की पूंछ पकड़ाते हुए कहा, ‘वो एक गाना है न! एजेंट विनोद का। कहां चल दी, कहां चल दी, प्यार की पुंगी बजाके। यह गाना मैं रोज सुनता हूं, लेकिन आज तक यह नहीं जान पाया कि यह पुंगी आखिर भला बजती कैसे हैं?’
यह सवाल सुनकर मैंने गहरी सांस ली, ‘बेटा! मैं भी आज तक नहीं जान पाया कि यह पुंगी बजती कैसे हैं?, जिसकी बजती है, बस वही जानता है, लेकिन किसी दूसरे को बता नहीं पाता है कि उसकी पुंगी बजाई जा रही है।’ अब चैंकने की बारी बेटे की थी, ‘क्या मतलब? यह कौन सी बात हुई भला! जिसकी बजती है, वह किसी दूसरे को कैसे नहीं बता पाता?’ मैंने दार्शनिक अंदाज में कहा, ष्पुत्तर! पिछले पंद्रह साल से तेरी मम्मी रोज मेरी पुंगी बजाती हैं, लेकिन आज तक मैं किसी से नहीं बता पाया ष्। ठीक वैसे ही जैसे अपने प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह पिछले नौ साल से पूरे देश की पुंगी बजा रहे हैं, लेकिन मजाल है कि कोई चूं चपड़ भी कर पाए।
यूपीए सरकार नंबर दो की पुंगी ‘दीदी’ बजा रही हैं। दीदी की पुंगी बजाने पर ‘बहन जी’ और ‘नेता जी’ तुले हुए हैं। उत्तर प्रदेश में नेता जी के सुपुत्र की पुंगी बजाने को बहन जी तैयार बैठी हैं। बस, मौका मिलने की देर है।’ बेटे ने मासूमियत से कहा, ‘पापा! आपकी बात मेरी समझ में नहीं आई। मनमोहन सिंह, दीदी, बहन जी और नेताजी का समीकरण मेरी समझ में नहीं आया। जरा आप विस्तार से बताएं।’
‘बेटे! बात यह है कि पिछले नौ सालों से भ्रष्टाचार और घोटालों के माध्यम से केंद्र की सरकार आम जनता का कचूमर निकालने पर तुली हुई है, तुम्हारे शब्दों में जनता की पुंगी बजा रही है। केंद्र सरकार को समर्थन देने वाली तृणमूल कांग्रेस की सर्वेसर्वा ममता दीदी गाहे-बगाहे समर्थन वापसी की धमकी देकर सरकार से अपने मनमुताबिक फैसले करवाती रहीं। लेकिन दीदी की इस कूटनीति की हवा उत्तर प्रदेश की बहन जी और नेताजी बाहर से बिना शर्त समर्थन देकर निकाल दीं।’ मैंने बेटे को विस्तार से समझाने की कोशिश की, ‘इस बात को तुम दूसरे उदाहरण से समझो।
अपने गुजराती रोल मॉडल नरेंद्र मोदी पिछले चार-पांच साल से राजनीतिक अखाडे में दूसरे राजनीतिक दलों को ललकार रहे हैं कि है कोई मेरे मुकाबले में तुम्हारे पास मुझसे अच्छा प्रधानमंत्री पद का उम्मीदवार? लेकिन उनकी पार्टी के साथ गठबंधन किए बैठे नीतीश बाबू एक हद से ज्यादा बढ़ने पर उनकी पुंगी बजा देते हैं। वे कहते हैं कि प्रधानमंत्री पद का उम्मीदवार कोई सेकुलर होना चाहिए। लोगों को एक बार यह सोचने पर मजबूर करते हैं कि आज की राजनीति में सेकुलर मतलब नीतीश बाबू है। लेकिन नीतीश की पुंगी मराठी माणुस बाल ठाकरे यह कहकर बजा देते हैं कि सुषमा जी से बढ़िया प्रधानमंत्री का उम्मीदवार न अतीत में कोई हुआ है, न भविष्य में कोई होगा।
फिल्म ‘पीएम . इन वेटिंग’ के डायरेक्टर आडवाणी दादा अपनी पुंगी अलग ही बजा रहे हैं। कहने का मतलब यह है कि राजनीति में हर कोई एक-दूसरे की पुंगी बजाने पर तुला हुआ है। बाकी वास्तव में पुंगी क्या बला है? अगर यह जानना हो, तो अपनी मम्मी से पूछो। शायद उन्हें मालूम हो।’
बेटे ने अपनी मम्मी को आवाज लगाई। शर्मा जी की घरैतिन ने किचन से निकलकर पूछा, ‘काहे को बाप-बेटे सिर पर आकाश उठाए हुए हो?’
शर्मा जी के लाडेश्वर ने उनकी कमअक्ली की बात दोहराते हुए वही सवाल दागा, तो घरैतिन ने तल्ख स्वर में कहा, ‘अक्लमंदों की जगह मंदअक्लों से ऐसी ज्ञान की बात पूछोगे, तो होगा क्या?
दरअसल, पुंगी एक किस्म के कागज और चमकीली ‘पन्नी’ से बना बाजा है, जो मेले-ठेले में पांच-दस रुपये में बच्चे खरीदकर बजाते हैं। याद करो, पिछले महीने तुमने एक कागज का बाजा खरीदा था जिसमें फूंक मारने पर ‘पूं…ऊ..ऊ..ऊ..ऊ’ की आवाज निकलती थी जिसे तुमने तीन दिन और रात बजा-बजाकर भेजा फ्राई कर दिया था।’ बेटे ने आश्चर्य व्यक्त करते हुए कहा, ‘अच्छा…तो वो पुंगी है?’ इतना कहकर वह स्कूल की ड्रेस चेंज करने चला गया और शर्मा जी पुंगी की तरह मुंह बाए बैठे रहे।
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