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कमल वाले सभी तालाब ढक दो !

बेबाक 'बकबक'....जारी है..
बेबाक 'बकबक'....जारी है..
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सारे कमल के तालाब ढकवा देने चाहिए । अरे भई, देश की सबसे पुरानी पार्टी कह रही है! बस , यूं ही उसे ऐतराज है तो है । बड़ा ही अजीबोगरीब मांग है ये तो ! कुदरत के इस खूबसूरत चेहरे को वोट पाने के लालच की बदबू से लैस चादर से ढकने की चुनाव आयोग से की गई इस गुजारिश में राजनीतिक साजिश की बू आ रही है।
हे भगवान ! राजनीतिक षडयंत्र का यही गंदा चेहरा देखना बाकी था । वैसे इस चेहरे से हमारी राजनीतिक विश्लेषण करने वालों की प्रबुद्ध जमात ने हमें न तो अवगत कराया और न ही परिचित करवाया। अपनी दिमागी खुचड-पुचड को अपनी कलम की स्याही के रास्ते पन्ने पर उतार दिया होता है तो जरा हम भी आपकी सोच से वाकिफ हो लेते । क्या ख्याल है ? वैसे भी आप लोग ही तेा ओपिनियन लीडर बनकर उभरे हैं । आप जैसेां पर यह उपाधि एकदम सूट भी करती है।

राजनीति पर तमाम विश्लेषण करने वालों , कहां हो ? राजनीति के इस गिरते हुए स्तर का भी तो विश्लेषण कर लिया करो कभी-कभार।कहां दुबक कर बैठे हो ?

क्या कहा ? इस मामले में कलम की दखलअंदाजी करने की हिम्मत नहीं है ! कहीं अपनी कलम के हमेशा के लिए छिनने का डर तो नहीं सता रहा है ? अच्छा यही बात है।
ओह ! वैसे आपका यह डर भी अपनी जगह सही ही है। क्या पता यही पार्टी एक बार फिर से सत्ता में आ गई और आपका इस मुद्दे पर विश्लेषण उसे हजम न हो और फिर फिर कलम पर ही पाबंदी लगवाकर आापको दोबारा कभी विश्लेषण करने लायक ही न छोडकर आपका हाजमा हमेशा के लिए बिगाड दे ! क्या भरोसा ऐसी पार्टी का ? प्रबुद्धता की तो वॉट लग जाएगी !
ऐसा ही कुछ-कुछ दिमाग में चल रहा है न ? वैसे आखिरी सांसे गिनने के बावजूद इस पार्टी के ऐसे दमखम को देख कर आपके हाथ-पैर ढीले पडना लाजिमी है । आखिरकार,इसका ‘सच्‍चा’ विश्लेषण लिखने से पेट पर लात पड़ने का खतरा भी तो आप पर ही मंडरा रहा है । और भी मुद्दे हैं , यूं उन पर ही लिखते रहिए फिर तो । किसी की आलोचना करके काहे को बेवजह पंगा मोल लेना !

वैसे, आपके डर को देखते हुए मुझे तो दूसरी पार्टियां खतरे के कटघरे में खड़ी नज़र आ रही हैं। पार्टी की उपरोक्त मांग अभी तो मध्य प्रदेश तक ही सीमित है। अगर इस पार्टी ने ऐसी ही मांग पूरे देश में हर एक पार्टी के लिए कर दी तो क्या होगा !

कल को यही पार्टी देश की सभी साइकिलों को पंचर करने की मांग भी तो चुनाव आयोग से कर सकती है ! यानि कि साइकिल पर चलने वाले आम आदमी की एकमात्र गद्दी भी छीनकर उसे पैदल चलता कर दिया जाएगा ! देश के सभी हाथियों को चिडियाघर में हमेशा के लिए कैद कर देना चाहिए । यानि कि इस मांग से आम आदमी का प्यारा साथी भी खुल कर सांस लेने से महरूम हो जाएगा ! इसका मतलब कि भविष्य में दोबारा ष्हाथी मेरा साथीष् जैसी कोई फिल्म सिनेमाघरों तक नहीं पहुंचने वाली ! ऐसे में आम आदमी से सीधा सरोकार रखने वाली झाडू भी आम आदमी की पहुंच से दूर न हो जाए कहीं ! आम आदमी सवेरे-सवेरे झाडू लगाता है ताकि उसके घर में लक्ष्मी का आगमन हो । घर की साफ-सफाई हो सके और गंदगी को बाहर निकाल कर फेंका जा सके । झाड़ू का अगर अस्तित्व मिटाने के लिए मांग अगर कर दी तो फिर न आम आदमी कभी भी आर्थिक रूप से सशक्त होने वाला ओर न ही इस देश में लंबे समय तक फैली रहने वाली यह गंदगी साफ होने वाली है ! बाकी छोटी मोटी पार्टियां तो यह सब देखकर ही अपना दम तोड़ देंगी। कुल मिलाकर अप्रत्यक्ष रूप से नुकसान तो आम आदमी का ही होना है ! इसका मतलब है कि पिछले छरूह दशकों से यह पार्टी एैंवे ही कहती आई है – _ _ _ _ _ का हाथ , आम आदमी के साथ। धेाखा ! इससे तो अच्छा यही होगा कि शेर ही अपना ‘पंजा’ मारकर हमें मिटा दे । कम से कम तड़प-तड़प कर मरने से तो अच्छा ही है।

लंबे अर्से से देश की छाती पर पंजे मार मारकर आम आदमी को घायल करती आई इस पार्टी को सबक भी आम आदमी ही सिखा सकता है। अभी वक्त है। सोच-समझकर हाथ की उंगली को ईवीएम पर रखिएगा भईया। वर्ना इस बार गल्ती की तो आम आदमी मिलना

तो दूर , हमारी गुठली तक के नामोनिशान नहीं मिलने वाले ! बाई चांस , अगर एक दो गुठलियां मिल भी गईं तो पक्का ये विश्व का आठवां अजूबा होगा !
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