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कौन है यह आम आदमी ?

बेबाक 'बकबक'....जारी है..
बेबाक 'बकबक'....जारी है..
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आम आदमी । सुना-सुना सा लगता है । काफी प्रचलित सा लगने लगा है यह शब्‍द
। खासतौर से ‘आप’ की पार्टी बनने के बाद से । लगभग हर कोई अक्‍सर इसे
देखता है , पढ़ता है , सुनता है और निकल लेता है। बावजूद इसके , इसे
अक्‍सर नजरअंदाज कर देना कईयों (खासतौर पर राजनीतिक मठाधीशों )के लिए
भारी भी पड़ जाता है ! चुनावी सुगबुगाहट में अक्‍सर इसकी आड़ लेकर अपने
दामन को बड़ी सफाई से बेदाग साबित कर देते हैं , हमारे नेता लोग । आइये
इसी आम आदमी को जानने,समझने और परखने का प्रयास भर करें ।

क्‍या है आम आदमी ? कौन है आम आदमी ? आम आदमी और खास आदमी में क्‍या
फर्क़ है ? वगैरह वगैरह ।

आम आदमी एक उपाधि , टाइटल या फिर तमगा है। इसे एक श्रेणी विशेष को
परिभाषित करने के लिए बनाया गया है। इसे मार्केटिंग की उपज कहना गलत न
होगा । इमोशन्‍स को शब्‍दों में पिरोना बखूबी जानते हैं हमारे शातिर
मार्केटर्स। जो दिखता है वो बिकता है , हर जगह अप्‍लाई कर देते हैं ये
लोग। ऐसा नहीं था कि आम आदमी के नामकरण के पहले और इस उपाधि को मार्केट
में आने से पहले हम इससे परिचित नहीं थे ! जब दिखा , तब इसकी पहचान बनी ।
यह लोकप्रिय और चर्चित हुआ ।

चिंताजनक बात यह है कि गरीबी, हताशा, निराशा, शोषित , मजबूर, प्रताडि़त
जैसे तमाम नकारात्‍मक विशेषण आम आदमी के अस्तित्‍व के साथ कुंडली मार कर
बैठे हैं। दूसरे शब्‍दों में इन्‍हें आम आदमी की पूंछ भी कहा जा सकता है।
आम आदमी के दो सबसे अच्‍छे देास्‍त हैं – एडजस्‍टमेंट और कम्‍प्रोमाइज ।
लाइफ से ट्रेन तक , खाने से पहनावे तक , हक़ से अधिकार तक , ज़रूरत से
इच्‍छाओं तक, इंसाफ से भाग्‍य तक । हर जगह ये दोस्‍त जोंक की तरह चिपके
रहते हैं।

अगर ये आम आदमी है तो लाजि़मी है कि कोई खास आदमी भी होता होगा। ऐसे में
भ्रम और कंफ्यूजन की दीवार आड़े आती है। समझ नहीं आता कि कौन है आम और
कौन है खास ?
गहन ऑब्‍ज़र्वेशन के आधार पर ये कुछ संभावित प्रश्‍न सामने आते हैं
जिनसे कम से इसका जवाब मिल सकता है कि – कौन है आम आदमी और कौन है खास
आदमी ? दोनों के बीच एक मामूली सा अंतर है । इस अंतर की डोर इतनी
नाज़ुक है कि हल्‍का सा तनाव मिलते ही इन दोनों के बीच का फर्क़ मिट जाता
है। ऐसी स्थिति सामान्‍य तौर पर काफी खतरनाक साबित हो सकती है ।

जो अपने खून पसीने की मेहनत से बिल्डिंग बनाता है या फिर जो उसमें रहता
है ?जो रात-रात भर शहनाइयों की धुन से शादी के माहौल को सुरमयी करता है
या फिर जिसके सिर पर पगड़ी सजती है ? जो ड्राइवर की सीट पर बैठता है या
जो उसकी बगल वाली सीट पर बैठता है ?जो मजदूरी करता है या जो मजदूरी के
पैसे देता है ? जो वेाट देता है या जो वोट के बदले नोट देता है ?जो भाषण
सुनता है या जो भाषण देता है ? जो इच्‍छाएं और पालता है या जो इन्‍हें
दफ़न कर देता है ? जो बेवजह अक्‍सर दुत्‍कारा जाता है या जो दुत्‍कारता
है ? जो पौधे सींचता है या जो इनसे केवल फूल ही तोड़ता है ?जो सपने
संजोता रह जाता है या जो इन्‍हें हक़ीकत का रूप देता है ? जो मशहूर बनाता
है या जो मशहूर बनता है ? जो भीख मांगता है या जो भीख देता है ?जो पैदल
चलकर पर्यावरण को बचाता है या जो प्रदूषण बढ़ाता है ?जो रात में रेाता है
या जो बेफिक्र होकर सोता है ?जो ईमानदारी की रेाटी खाता है या जो ईमान
बेचकर रेाटी खाता है ? जो प्‍यादा है या जो वज़ीर है ?जो घूस देते हैं या
जो घूस लेते हैं ? जो ठगी का शिकार होता है या जो ठगता है ?

इस सबके इतर , ताज़ा अपडेट्स के मुताबिक आम आदमी टोपी पहनता है ।पहनाता
नहीं । टोपी पहनाना नहीं आता है बेचारे को । इसीलिए तो आम है , वर्ना कब
का खास हो गया होता !
इसके अलावा ये छिपा रूस्‍तम है। इसके पास सत्‍ता की बुनियाद तक हिलाने का
माद्दा है और हाल ही में इसने देश की राजधानी में ऐसा कर के दिखाया है !
इसके पास वोट की ताकत है (दुर्भाग्‍यवश खास आदमी के पास भी है ), नोट की
नहीं। ये हिंसा का नहीं अहिंसा का पुजारी है । ये सच्‍चा है ।ये ईमानदार
है , बेईमान नहीं । मासूम है , नादान है लेकिन अनभिग्‍य नहीं । सतर्क
है लेकिन चतुर नहीं । शिष्‍ट है , असभ्‍य नहीं । हिम्‍मती है , डरपोंक
नहीं । भोला है लेकिन मूर्ख नहीं। थका है लेकिन हारा नहीं।

सौ शब्‍दों की एक बात – इंसान है , भगवान नहीं । बावजूद इसके , कोई खेलने
का सामान नहीं !

वैसे जो आम बेचता है और इसे देखकर ही मीठेपन का अहसास करता है , वो है
आम आदमी या फिर जो खाता है (एकदम चूसकर और निचोड़कर )वो है आम आदमी ? इस
सवाल का जवाब अभी तक नहीं सूझा है । जेहन में अक्‍सर कौंधियाता रहता है ।
जनाब, है कोई जवाब ?

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