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किसकी हैं ये चीखे ? ….. ये किसका दर्द है ?

बेबाक 'बकबक'....जारी है..
बेबाक 'बकबक'....जारी है..
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मैं न तो आजतक मुजफ्फरनगर गया हूं और न ही शामली। हालांकि, मीडिया में पढ़ी, सुनी और देखी हुई खबरों के आधार पर इतना ज़रूर कह सकता हूं कि कोई तो है जो ज्‍यादती कर रहा है। कोई तो पीडि़त है। इन लिखे हुए शब्‍दों और दौड़ते हुए विजुअल्‍स में चीखें,दर्द,पीड़ा,खामोशी, सुगबुगाहट, डर ,पछतावा , मायूसी,निराशा से लबरेज़ तमाम अप्रत्‍यक्ष तत्‍व दिमाग के इर्द-गिर्द घूमने लगते हैं। अंदर तक झकझोर देते हैं।

किसकी हैं ये चीखे ? ये किसका दर्द है ?इसकी वजह क्‍या है ? दर्द निवारण और समस्‍याओं के निराकरण के लिए जिम्‍मेदारी किसकी है ? जिम्‍मेदारी से मुंह कौन चुरा रहा है ? बुलडोज़र चलवा कर कानून व्‍यवस्‍था कैसे सुधर सकती है ? मदद के लिए बढ़े हाथों में प्रदेश सरकार को अपनी विरोधी पार्टियों का अक्‍स कैसे दिख गया ?
आखिर कुछ तो जवाब होगा दिमागी उथल-पुथल से उपजे इन प्रश्‍नों का ?

अरे सरकार आप ही बता दो । एक तो आप एकदम मिस्‍टर इंडिया हेा गए हो , कुर्सी मिलने के बाद से ! ऊपर से, जिंदगियों को नया जीवन देने की बजाय इनके सपनों पर बुलडोज़र चलवा रहे हो ! आपने मरहम लगाना नहीं सीखा तो कम से कम जख्‍मों पर नमक तो मत छिड़किए ! जख्‍म ताज़े हैं अभी तक , मत कुरेदिए प्‍लीज । सरकार, हम पैसों के नहीं आत्‍मसम्‍मान के भूखे हैं।

वैसे ,संवेदनशीलता का परिचय तो आपके सैफई महोत्‍सव से स्‍पष्‍ट हो ही गया। आखिर , आपका लोकतांत्रिक अधिकार जो है। लेकिन , ज़रूरतमंदों को आर्थिक मदद और उनके पुनर्वास के समुचित व्‍यवस्‍था करने की इस अक्षमता को आखिर क्‍या समझा जाए ?
अफ़सोस बस इतना सा है कि आपने अधिकार और जिम्‍मेदारी में अधिकारों को ज्‍यादा तवज्‍जो दी है।
भूतकाल के विजेताओं (भारतीय ओलंपिक विजेताओं ) को गत 26 दिसंबर को 2 करोड़ की चेकें काट दी , लेकिन अगर यही पैसा वर्तमान व्‍यवस्‍था को दुरूस्‍त करने में उपयोग किया होता तो भविष्‍य में वोट मिलने का रास्‍ता तो खुलता ही(जिसकी संभावनाएं अब कम ही दिखती हैं) , साथ ही साथ लाखों दुआएं भी बोनस में मिलतीं ।
वक्‍त के इस कालचक्र में यह पंचर साइकिल बहुत पीछे जा चुकी है। इसके पंचर होने की मुख्‍य वज़ह यही है कि जनता ने उम्‍मीदों और आशाओं की जो हवा इसके पहिए में भरी थी वो फुस्‍स हो गई ।
मौकापरस्‍त राजनीति बंद करो साहिब।ऊब चुके हैं हम। राजनीतिक गलियारों में नूरा कुश्‍ती करने की बजाय समस्‍याओं को पराजित के लिए कुश्‍ती लडि़ए और पुरज़ोर प्रयास कीजिए । जीत , ज़रूर होगी। हिम्‍मत-ए-मर्दा, तो मदद-ए-ख़ुदा ।

इंतेहा-ए-पीर हो चुकी है सरकार
बख्‍श दो मेरा यह छोटा सा संसार ।

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