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सुप्रीम कोर्ट ने हाल ही में मोदी सरकार की गंगा सफाई योजना पर नाराजगी
जाहिर की है। शीर्ष अदालत ने कहा कि जिस गंगा को साफ करने का जो रवैया
केंद्र सरकार अपना रही है उसमें दो शताब्दी वर्ष से ज्यादा का समय लगेगा!
कोर्ट को इस बात पर संदेह है कि यह पीढ़ी इस पवित्र नदी के पुराने स्वरूप
को फिर से देख सकेगी। उसका मानना है कि उस पल से कम से कम आने वाली पीढ़ी
न महरूम रह जाए कि जब निर्मल गंगा का सपना साकार हो सके। इसके लिए कोर्ट
ने सरकार को तीन सप्ताह की मोहलत देते हुए गंगा सफाई का चरणबद्ध
कार्यक्रम पेश करने का निर्देश दिया है ताकि गंगा अपने खोए हुए गौरव को
दोबारा प्राप्त कर सके।
गौरतलब है कि मौजूदा केंद्र सरकार ने खासतौर पर गंगा शुद्धिकरण के लिए
बाकायदा एक मंत्रालय का अलग से गठन किया है। इसके साथ ही पतितपावनी को
निर्मल बनाने के लिए 2,037 करोड़ रूपये की ‘‘नमामि गंगे‘‘ योजना का ऐलान
भी किया था और यह रकम 10 जुलाई को आवंटित भी कर दी। खास बात यह है कि
नरेन्द्र मोदी ने 26 मई को सत्ता संभालने के अगले ही दिन गंगा संरक्षण के
लिए इस मंत्रालय के गठन को हरी झंडी दिखा दी थी। पर्यावरण मंत्रालय, वन
और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय तथा केंद्रीय जल संसाधन मंत्रालय ने संयुक्त
रूप से गंगा को प्रदूषित करने वाले उद्योगों की आॅनलाइन निगरानी की
व्यवस्था भी शुरू की। पर्यावरण मंत्रालय ने संबंधित राज्यों के प्रदूषण
नियंत्रण बोर्ड से 31 मार्च 2015 तक सभी उद्योगों में प्रदूषण की आॅनलाइन
निगरानी के उपकरण लगाने का निर्देश भी दिया था।
एक प्रतिष्ठित अखबार की विशेष रिपोर्ट के अनुसार बीते तीन दशक के दौरान
गंगा एक्शन प्लान के दो चरणों में नदी को साफ करने के लिए 20 हजार करोड़
रूपये से अधिक की राशि आवंटित की गई। लेकिन साफ-सुथरी गंगा एक मृगमरीचिका
बनकर रह गई जबकि इस दौरान सभी तरह की गंदगी नदी में मिलती रही है। करीब
30 वर्षों पहले 1985 में रखी गई गंगा एक्शन प्लान की नींव के बाद से अब
तक नदी को स्वच्छ बनाने के लिए दो चरणों में केवल 967.30 करोड़ की राशि
ही खर्च की गई है। इसका सीधा मतलब है कि प्रति वर्ष मात्र 30 करोड़ रुपये
खर्च किये गए। यानि कि गंगा सफाई के लिए जो बुनियादी ढांचा खड़ा किया
जाना था उसे भी नहीं किया गया। विश्व बैंक की रिपोर्ट के अनुसार उत्तर
प्रदेश की 12 फीसदी बीमारियों की वजह प्रदूषित गंगाजल है। 2007 की
युनाइटेड स्टेट्स की रिपार्ट की मानें तो हिमालय पर स्थित गंगा की
जलापूर्ति करने वाले हिमनद की 2030 तक समाप्त होने की संभावना है। इसके
बाद नदी का बहाव मानसून पर आश्रित होकर मौसमी ही रह जाएगा। ये आंकड़े
खामोश होकर भी काफी कुछ बयां कर रहे हैं।
इन तमाम पहलुओं को सरसरी निगाह से देखने पर एक आस जगी थी कि यह सरकार
गंगा को निर्मल बनाने के लिए अन्य सरकारों के मुकाबले कहीं ज्यादा
प्रतिबद्ध है लेकिन सुप्रीम कोर्ट की उक्त टिप्पणी से लगता है कि सरकार
बदली है लेकिन कार्यप्रणाली नहीं।
गंगा को निर्मल और स्वच्छ बनाने के लिए यूं तो कई प्रयास हुए। सरकारें
आईं और चली गईं। बेहद खूबसूरती से उन्होंने आंकड़ों की गणित से यह भी
साबित कर दिया कि गंगा सफाई का फीसद बढ़ा है। इस बाजीगिरी में एक सवाल
बार-बार सामने आ खड़ा होता है- आखिर कब और कैसे साफ होंगी गंगा? अगर
इन्हीं आंकड़ों पर प्रकाश डालें तो अंधेरा ही अंधेरा नजर आता है।
उत्तराखंड, उत्तर प्रदेश, बिहार, झारखंड, और पश्चिम बंगाल में लगभग 900
उद्योगों की गंदगी गंगा में प्रवाहित हो रही है। आंकड़े बताते हैं कि
गंगा दुनिया की सबसे ज्यादा प्रदूषित पांच नदियों में से एक है। गोमुख से
ही सीधा घरों, व्यावसायिक भवनों क मल-मूत्र, कूड़ा-कचरा गंगा में जा रहा
है। उत्तराखंड पर्यावरण संरक्षण एवं प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के अनुसार
गोमुख से हरिद्वार तक 12 नगर पालिका सीमाओं से गुजरने के दौरान गंगा में
प्रतिदिन आठ करोड़ 90 लाख लीटर सीवेज का पानी गंगा में सीधे गंगा में
छोड़ा जाता है। हरिद्वार तक आते-आते गंगा के प्रदूषित होने का अंदाजा इसी
बात से लगाया जा सकता है कि उसके पानी में कोलीफार्म की मात्रा 5500
प्रति सौ मिली लीटर हो चली है। पेयजल के लिए यह मात्रा 50 और नहाने के
लिए 500 प्रति 100 मिली लीटर से ज्यादा नहीं होनी चाहिए। दूसरे शब्दों
में कहें तो हरिद्वार तक आते-आते गंगा का पानी न तो पीने लायक रह जाता है
और न ही नहाने लायक।
गंगा में प्रदूषण के तीन मुख्य कारण हैं उद्योग, धार्मिक आस्था, और बढ़ती
आबादी। दरअसल, उद्योगों के पास कचरा संसोधन संयंत्र नहीं हैं। वहीं
धार्मिक आस्था से संबंधित तथ्य यह है कि गंगा के विभिन्न घाटों पर दाह
संस्कार होता है व तीसरा कारण है आबादी का दिनोंदिन बढ़ता दबाव। कस्बों
और शहरों का विस्तार होता जा रहा है। स्थानीय निकाय ठीक से अपना कर्तव्य
नहीं निभा रहे हैं। सीवर व कचरे के प्रबंधन व सफाई पर उनका ध्यान नहीं
है। इन आंकड़ों और प्रदूषण के कारणों पर गौर करने से यह स्पष्ट हो जाता
है कि गंगा सफाई के लिए अब तक किये गए प्रयास नाकाफी हैं। देश की इस
अमूल्य विरासत को बनाए रखने के लिए हमें सरकार के साथ कंधे से कंधा
मिलाकर चलना होगा। राजनीतिक नजरिये से देखें तो मौजूदा सरकार ने थोड़े से
समय में ज्यादा से निर्णय लिये हैं। लेकिन उच्च कोर्ट इन निर्णय को आम
आदमी के नजरिये से देखना और समझना चाहता है, जो कि बेहद जरूरी है।
हालांकि, मोदी सरकार के प्रति जनता का बेशुमार विश्वास और आशाएं हैं। बस
उम्मीद इसी बात की है कि सरकार गंगा की महत्वता को प्रमुखता देगी और सफाई
के मामले में विश्व की सबसे साफ नदियों के समतुल्य रख सकेगी। अब यह सरकार
और हमपर निर्भर करता है कि हम गंगा को गंगा मां मानते हैं या फिर महज
बहता पानी ही मानते हैं। गंगा की शुचिता के लिए हर शख्स को सुधरना होगा।
केवल सरकार अकेले कुछ नहीं कर सकती। क्योंकि, अकेला चना भाड़ नहीं फोड़
सकता।
प्रवीण दीक्षित
हरदोई
9044060578
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