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हिंसा के सुरों वाली बांसुरी तोड़ना है जरूरी

बेबाक 'बकबक'....जारी है..
बेबाक 'बकबक'....जारी है..
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वैचारिक स्‍तर पर विरोध का स्‍वागत करना चाहिए। कुछ बेहतर सीखने को मिल
सकता है। लेकिन विरोध का मामूली घाव अगर नासूर बनने लगे तो उसका इलाज कुछ
यूं करना चाहिए कि उसे जड़ से समाप्‍त किया जा सके। भारत ने पाकिस्‍तान
को तोहफे में प्‍यार का पैगाम भेजा, लेकिन पाकिस्‍तान ने जवाब में मौत के
सिवाय आखिर क्‍या दिया ? सीमा विवाद की चक्‍की में आटे की तरह पिसती
बेगुनाहों की जिंदगियों का मर्म समझने की फिक्र हुकूमत करने वालों को
आखिर क्‍यों नहीं ?

अगर फिक्र है तो अरसे से भारतीयों के जख्‍मों पर नफरत का नमक छिड़कने
वाले उन दहशतगर्दों को माकूल जवाब अब तक क्‍यों नहीं दिया गया ? क्‍या
कहा ! जवाब लगातार दे रहे हैं? वाकई, बहुत बड़ा जिगर है आपका। बड़े
हिम्‍मती हैं आप, जो हकीकत से परिचित होने के बावजूद ऐसा कह लेते हैं।
काश, कि आपकी इस बात की पुष्टि वो बेगुनाह भी कर देते जो पल-पल दहशत के
साये में रहने को मजबूर हैं व जिनके कानों में दीवाली के पटाखों की जगह
गोलियों की तड़तड़ाहट गूंजती रहती है । क्‍या उनका जुर्म सिर्फ इतना है
कि उनका जन्‍म कश्‍मीर में हुआ ?

जवाब और चेतावनी में अंतर होता है हुक्‍मरानों। अपनी नाकामी पर परदा
डालकर कब तक बात की शुरुआत करने की पहल करने की जिद लिए बैठे रहेंगे ?
पाकिस्‍तानी आएंगे, फिर हमरी बातचीत होगी। इसके बाद एक मसौदा तैयार होगा
और इससे एक बार फिर निकलेगी ऐतिहासिक हेडिंग जिसे देश के हर अखबार में
पहले पन्‍ने पर छापा जाएगा – आतंकवाद के खिलाफ मिलकर लड़ेंगे
भारत-पाकिस्‍तान। दोनों देशों के मुखिया सुर से सुर मिलाते हुए संयुक्‍त
बयान जारी करेंगे। ” हम परस्‍पर सहयोग के हिमायती हैं”। संयुक्‍त बयान
के साथ डिस्‍क्‍लेमर दहेज में मुफ्त मिलता है। भारत व पाकिस्‍तान केवल
भौगोलिक नजरिये से अलग हैं। वैचारिक स्‍तर पर हमारी सोच एक है। हम विकास
चाहते हैं। लेकिन कुछ असामाजिक तत्‍वों को यह नागवार गुजरता है और वे
बार-बार हमारी एकता पर प्रहार करते हैं। …..और एक बार फिर हो गई सैड
पिक्‍चर की हैप्‍पी एंडिंग।

लेकिन इस सबके बाद फिर क्‍या होगा ? आतंकवाद खत्‍म हो जाएगा ? यह कौन सा
आतंकवाद होगा ? क्‍या इसमें आंतरिक आतंकवाद का भी जिक्र कहीं किया गया ?
यह सिलसिला आखिर कब तक चलेगा ? ये चंद वाजिब सवाल हैं जिन्‍हें हमारा
आरटीआई कानून भी पूछने की छूट नहीं देता है। देश की सिक्‍योरिटी से जुड़ा
मसला जो ठहरा। लेकिन आम आदमी भी पाकिस्‍तान के लगातार हमलों से कुछ तो
समझता ही होगा। हर मुद्दे को राजनीतिक रंग दिया जाना जरूरी नहीं हैं साहब
क्‍योंकि राजनीति किसी का पेट नहीं पालती। अमन-ओ-चैन और सुकून की जिंदगी
की ख्‍वाहिश रखने वाले इंसान की उम्‍मीदों पर नकाबपोशों की करतूतें
अक्‍सर हावी हो जाती हैं। आज भी हो रही हैं। फर्क बस इतना सा है कि आतंक
का माहौल बनाने वाले इन पड़ोसियों के चेहरों पर नकाब नहीं है। इसके
बावजूद इन्‍होंने इंसानियत का अप्रत्‍यक्ष फर्जी नकाब पहन रखा है। यानि
कि आतंकवाद अब नए चेहरे के साथ चुनौती दे रहा है।

आंख के बदले आंख मांगोगे तो सारी दुनिया अंधी हो जाएगी। इस डॉयलाग से मैं
भी इत्‍तेफाक रखता हूं। लेकिन आंख तरेरने वाले का क्‍या करें ? महज
कूटनीतिक आधार पर हम कब तक अपनों की मिट्टी देखकर देश की मिट्टी के गौरव
को सिसकते हुए देखते रहेंगे ? बेगुनाहों की कुर्बानियों का मोल हम कब
समझेंगे ? निजी स्‍वार्थ की कलम से आपसी द्वंद की जाे कहानी शुरू हुई है
उसे कौन समाप्‍त करेगा ? आपसी सौहार्द की इबारत कैसे लिखी जाएगी ? ये
सवाल पूछ रहीं हैं उन बेगुनाहों की आत्‍माएं जो वक्‍त से पहले परमात्‍मा
में विलीन हो गईं। जिंदगियों की हिफाजत करना और सांसों को महफूज रखना
हुक्‍मरानों की भी जिम्‍मेदारी है। अब तक के सभी हुक्‍मरान इसमें असफल
रहे हैं।

इस नई सरकार से भी केवल उम्‍मीद ही की जा सकती है। भरोसा करना महंगा पड़
सकता है। पाकिस्‍तान की फायरिंग के जवाब में भारतीय सरकार की हालिया
कार्रवाई फिलहाल संतोषजनक नहीं है। इस सच्‍चाई को स्‍वीकारना चाहिए।
नेताओं के तेवर उस जेवर की तरह हाेते हैं जिसे बदलने में उन्‍हें सेकेंड
भी नहीं लगता। वैसे, अगर आप बार-बार प्रेम की बांसुरी बजाने का प्रयास
करें और इसमें से हमेशा हिंसा के सुर ही निकलें तो बांसुरी तोड़ देना ही
बेहतर है। इसमें शायद कन्‍हैया को भी आपत्ति नहीं होगी।

प्रवीण दीक्षित
हरदाेई (उत्‍तर प्रदेश)
सम्‍पर्क सूत्र- 9044060578

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