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…ताकि समाज में न रह जाए कोई बालिका वधु

बेबाक 'बकबक'....जारी है..
बेबाक 'बकबक'....जारी है..
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हमारे समाज का बुराईयों से पुराना रिश्ता है. अफसोसजनक यह है कि इस रिश्ते की नींव में एक ईंट बाल विवाह की भी लगी है. जी हां, बाल विवाह. वह सामाजिक कुरीति जो हजारों मासूमों के सपनों व अरमानों को एक बंधन में सीमित कर दे. बचपन के असल मायने समझने के दौर में जब मासूमों से उनकी नादान गुस्ताखियों का हक छीन लिया जाए तो जरा सोचिए यह किस हद तक उचित है. कहते हैं कि सफल जीवन के लिए स्वस्थ खुशहाल बचपन की दरकार होती है. शादी का बंधन अमूमन एक मकसद लिए हुए होता है. लेकिन कच्ची उम्र में इस जिम्मेदारी का बोझ अगर बच्चों पर डालने पर भविष्य के दुष्परिणाम स्वाभाविक हैं. बचपन उस गीली मिट्टी के घड़े के समान है जिसे जिस रूप में ढाला जाए वो उसी रूप में ढल जाता है.

तमाम प्रयासों के बाबजूद हमारे देश में बाल विवाह जैसी कुप्रथा का अंत नहीं हो पा रहा है. ये तमाम प्रयास जब तक अथक प्रयासों की शक्ल नहीं लेते तब तक उम्मीद की किसी किरण की कल्पना करना भी उचित नहीं होगा. बाल विवाह की जड़ें समाप्त न होने की आखिर क्या वजहें हैं? मेरा निजी मत यह है कि लिंगभेद और अशिक्षा इसके लिए काफी हद तक जिम्मेदार है. इसके साथ ही लड़कियों को कम रुतबा दिया जाना एवं उन्हें आर्थिक बोझ समझना. क्या इसके पीछे आज भी अज्ञानता ही जिमेदार है या फिर धार्मिक, सामाजिक मान्यताएँ और रीति-रिवाज ही इसका मुख्य कारण हैं? कारण चाहे कोई भी हो लेकिन खामियाजा तो बच्चों को ही भुगतना पड़ता है! राजस्थान, बिहार, मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश और प. बंगाल में सबसे खऱाब स्थिति है. बाल विवाह के कारण कम उम्र में सेक्स की शुरुआत एवं गर्भधारण से जुड़ी स्वास्थ्य समस्याएं होने की प्रबल सम्भावना होती है. जिनमें एच.आई.वी (एड्स) एवं ऑब्स्टेट्रिक फिस्चुला शामिल हैं. कम उम्र की लड़कियां, जिनके पास रुतबा, शक्ति एवं परिपक्वता नहीं होती, अक्सर घरेलू हिंसा, सेक्स सम्बन्धी ज़्यादतियों एवं सामाजिक बहिष्कार का शिकार होती हैं.

कम उम्र में विवाह लगभग हमेशा लड़कियों को शिक्षा या अर्थपूर्ण कार्यों से वंचित करता है जो उनकी निरंतर गऱीबी का कारण बनता है. बाल विवाह लिंगभेद, बीमारी एवं गऱीबी के भंवरजाल में फंसा देता है. जब वे शारीरिक रूप से परिपक्व न हों, उस स्थिति में कम उम्र में लड़कियों का विवाह कराने से मातृत्व सम्बन्धी एवं शिशु मृत्यु की दरें अधिकतम होती हैं. और फिर कच्ची उम्र में गर्भ धारण के चलते उनकी जान को भी खतरा बना रहता है. बाल-विवाहित से पति-पत्नी स्वस्थ एवं दीर्घायु सन्तान को जन्म नहीं दे पाते. कच्ची उम्र में माँ बनने वाली ये बालिकाएं न तो परिवार नियोजन के प्रति सजग होती हैं और न ही नवजात शिशुओं के उचित पालन पोषण में दक्ष. राजस्थान जैसे प्रदेश में आज भी पचास फीसदी बाल विवाह हो रहे हैं. जनगणना के ताजा आंकड़ों पर अगर गौर करें तो तकरीबन 17 लाख बच्चों में से 6 फीसदी बच्चे जिनकी उम्र 10 से 19 के बीज है वह शादीशुदा हैं. साथ ही इनमें से कई बच्चें ऐसे हैं जिनकी शादी अपने से कई बूढ़े व्यक्तियों के साथ हुई है. भारत में बाल विवाह की समस्या को इसी बात से समझा जा सकता है कि भारत में मौजूदा समय में 130 लाख बाल बहुए हैं. जिन्होंने 60 लाख बच्चों को जन्म दिया.

देश में मानव विकास दर के लिए यह आंकड़ा काफी चिंता का विषय है. 2011 जनगणना के अनुसार 76 फीसदी यानि 1 करोड़ सात लाख लड़कियों का बाल विवाह हुआ है. वहीं 40 लाख लड़कों का भी बाल विवाह हुआ है, यानि लड़कियों का बाल विवाह दर कहीं अधिक है. 2001 में 34 लाख लड़कों का बाल विवाह हुआ जो कि 2011 में बढ़कर 40 लाख हो गया. उत्तर प्रदेश में 7.73 लाख लड़कों का बाल विवाह हुआ है जबकि 20 लाख से अधिक लड़कियों का बाल विवाह हुआ है. वहीं इसके बाद पश्चिम बंगाल, बिहार, महाराष्ट्र और राजस्थान का नंबर आता है. भारत में मातृ मृत्यु दर प्रति लाख 2014 में 190 हो गयी है जो कि 2006 में 254 थी. लेकिन अभी भी यह आंकड़ा काफी चिंता का विषय है. बालविवाह एक अपराध है, इसकी रोकथाम के लिए समाज के प्रत्येक वर्ग को आगे आना चाहिए. लोगों को जागरूक होकर इस सामाजिक बुराई को समाप्त करने में अपनी महत्वपूर्ण भूमिका निभानी चाहिए.

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